Murugan Chalisa (Skanda Chalisa)
|| श्री मुरुगन चालीसा || दोहा: ध्यान धरू मुरुगन प्रभु का, शरणागत प्रतिपाल। बुद्धि बल विद्या देहु मोहि, हरो सकल जंजाल।। जय जय मुरुगन देव अपारा, शिव शंकर के पुत्र दुलारा। कार्तिकेय स्कन्द कहलाओ, बाल रूप में मन हर्षाओ।। षडानन तुम रूप विराजो, मयूर वाहन पर तुम साजो। शूल शक्ति कर में अति सोहे, असुरों को पल में संमोहे।। तारकासुर का वध तुम कीन्हा, देवों को भय मुक्त कीन्हा। क्रौंच पर्वत को भेदा तुमने, दुष्टों का संहार किया तुमने।। सुब्रह्मण्यम नाम तुम्हारा, भक्तों का करते उद्धारा। षण्मुख से तुम ज्ञान प्रकटाओ, ब्रह्म ज्ञान का भेद बताओ।। शिव गुरु तुम कहलाते स्वामी, विद्या बुद्धि के अंतर्यामी। देवसेना से व्याहे स्वामी, वल्ली देवी से अति नामी।। पलनी मलई वास तुम्हारा, तिरुचेन्दूर अति है प्यारा। स्वामी मलई पर ज्ञान दिया, गुरु बन शिव को उपदेश दिया।। पझमुदिर्चोलाई है धाम, एरुमावूर में है विश्राम। तिरुत्ताणि में वास तुम्हारा, तिरुपरमकुंद्रम अति प्यारा।। बाल सुब्रह्मण्यम रूप अनूप, भक्तों के दुख हरते भूप। कुमारा तुम हो बल के धाम, पूर्ण करो सब जन के काम।। कवच कुंडला अति मन भावन, भक्तों को देते वर पावन। शरवण भव मंत्र को जपे, संकट सब भक्तों के कटे।। जो कोई चालीसा यह गावे, रोग दोष दुख सब मिटावे। मन इच्छा सब पूरी होवे, अंत में मोक्ष पद पावे।। नित उठ पाठ करे जो कोई, भय संकट से मुक्त हो सोई। ज्ञान बुद्धि विद्या को पावे, मुरुगन कृपा सब जग में छावे।। कलयुग में तुम देव महान, सत्य शरणम् मुरुगन भगवान। इति श्री मुरुगन चालीसा समाप्त।