Ayyappa Chalisa
|| श्री अय्यप्प चालीसा || दोहा: ध्यान धरू श्री अय्यप्पा का, मन में हो विश्वास। करो कृपा मुझ पर स्वामी, पूरण हो सब आस।। जय जय अय्यप्पा देव महान, तुम हो शिव हरि के संतान। शबरी गिरी पर वास तुम्हारा, भक्तों का करते उद्धारा।। पांडिराज के पुत्र दुलारे, मोहिनी रूप में हरि प्यारे। शंभु शक्ति का तुम हो सार, जग में करते बेड़ा पार।। पंचभूत के तुम हो स्वामी, अन्तर्यामी हो, हे नामी। धर्म-संस्थापक तुम बलवान, दुःखियों के हो तुम भगवान।। पुलीवाहना तुम कहलाते, वन में विचरण करने जाते। एरुमेली में वास तुम्हारा, वावर स्वामी अति प्यारा।। कन्था माला तुम हो धारी, शरणागति की शोभा न्यारी। इरुमुडी तुम संग में लाते, अट्ठारह सीढ़ी चढ़ जाते।। पम्पा नदी में करते स्नान, पापों का होता है निदान। कनिपक्कम में शक्ति तुम्हारी, दूर करे सब बाधा भारी।। हरिहर पुत्र तुम बलदाई, दुष्टों के तुम हो हरजाई। ज्ञान-शक्ति के तुम हो सागर, भवसागर से करते उजागर।। कांति तुम्हारी सूर्य समान, तेज तुम्हारा बड़ा महान। भस्म लेपन तन पर सोहे, भक्तों के मन को मोहे।। नीलवर्ण की छवि तुम्हारी, दर्शन को आते नर-नारी। कमल आसन पर तुम बिराजे, देव असुर भी तुमको लाजे।। शबरी माता ने तुम्हें पूजा, फल फूलों से किया दूजा। प्रभु दर्शन की थी अभिलाषा, तुमने पूरी की हर आशा।। मकर ज्योति तुम हो दिखाते, भक्तों को तुम दर्शन पाते। पहाड़ों पर जब ज्योत जले, अंधकार सब दूर टले।। संकट मोचन, कष्ट निवारे, तुम हो सबके पालनहारे। रोग दोष सब दूर भगाओ, दुख दारिद्र को मिटाओ।। जो कोई चालीसा यह गावे, निश्चय ही वह सुख पावे। मन इच्छा सब पूरी होवे, अंत में मोक्ष पद पावे।। सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, अय्यप्पा की कृपा पावे। नित उठ पाठ करे जो कोई, धन्य धन्य वह नर हो सोई। अय्यप्पा नाम जपे जो प्राणी, उसकी पूरी होवे काहानी। कलयुग में तुम देव महान, सत्य शरणम् अय्यप्पा भगवान। इति श्री अय्यप्प चालीसा समाप्त।